दिल ढूँढता हैं फिर वही ...
एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी
ऐसा तो कम ही होता हैं, वह भी हो और तन्हाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती हैं तब मांझी की रुसवाई भी
दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया आपका इक सौदाई भी
खामोशी का हासिल भी एक लम्बी सी खामोशी हैं
उनकी बात सुनी भी हमने, अपनी बात सुनायी भी
ऐसा तो कम ही होता हैं, वह भी हो और तन्हाई भी...
~ गुलज़ार
ऐसा तो कम ही होता हैं, वह भी हो और तन्हाई भी
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
कितनी सौंधी लगती हैं तब मांझी की रुसवाई भी
दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया आपका इक सौदाई भी
खामोशी का हासिल भी एक लम्बी सी खामोशी हैं
उनकी बात सुनी भी हमने, अपनी बात सुनायी भी
ऐसा तो कम ही होता हैं, वह भी हो और तन्हाई भी...
~ गुलज़ार
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Labels: Poetry
2 Comments:
गुलजार rocks म्हणू ... की आणि काही!! पर अच्छा याद दिलाया
Oh yes.. Gulzar rocks- BIG TIME :)
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